स्वातंत्र्यवीर सावरकर १९३७ में पूर्ण मुक्ति के बाद राजनीति में सक्रिय हो गए। उसी वर्ष उनकी नियुक्ति हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद पर हुई और हिंदू महासभा की राजनीतिक यात्रा की भी शुरूआत हो गई। १९३७ से १९४२तक ६ वर्ष वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे। उन्होंने अखंड भारत के प्रसार के लिए पूरे देश का भ्रमण किया। उनके कारण ही हिंदू महासभा कांग्रेस बाद दुसरा प्रमुख राजनीतिक दल माना जाने लगा।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर अस्वस्थता के कारण वे सक्रिय राजनीति से १९४६में अलग हो गए थे, परंतुउनका चमत्कार जनमानस के मध्य अब भी था। इसीलिए गांधी वध का आरोप जानबूझकर लगाया गया और स्वातंत्र्यवीर सावरकर की राजनीतिक हत्या कर दी गई; एक प्रमुख राजनीतिक दलहिंदू महासभा का अस्तित्व भी मिटा दिया गया। ये सब हुआ केवल सत्ता-स्वार्थ के लिए।
नेहरू के बाद शास्त्री और शास्त्रीजी के पश्चात इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री हुई। अब तक स्वातंत्र्यवीर सावरकर पूर्णरूप से दुर्लक्षित हो गए थे। हिंदू महासभा का अस्तित्व भी नाम मात्र ही शेष था। इस कारण सावरकर की ओर देखने की कांग्रेस की दृष्टि भी बदल गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कई विषयों में सावरकर के विचारों के अनुरूप व्यवहार करने लगी थीं। मशीनीकरण, सैन्य तैयारी, परमाणु अस्त्र निर्माण,पाकिस्तान को युद्ध में बुरी तरह से पराजित करके किया गया बांगलादेश निर्माण ऐसे अनेक निर्णय सावरकर के विचारों के अनुरूप ही हुए थे। गांधी-नेहरू के पुराने विचार अब भुलाये गए थे। इस परिस्थिति में विभिन्न अवसरों पर सरकार द्वारा सावरकर का सम्मान होने लगा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने २८ मई १९७० को सावरकर जयंती के दिन उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया।
१९८० में सावरकर जयंती के निमित्त, मुंबई के दादर स्थित स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक में भेजे अपने शुभकामना संदेश में इंदिराजी ने लिखा था, अंग्रेजों की सत्ता का निडरता से सामना करनेवाले वीर सावरकर का भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। भारत माता के इस अद्वितीय सुपुत्र की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम के लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामना!’ इसके व्यतिरिक्त उन्होंने स्मारक को दस हजार रुपए का धनादेश भी भेजा था।
२८ मई १९७९ को उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम ने मुख्यमंत्री शरद पवार की उपस्थिति में स्वातंत्र्यवीर सावकर राष्ट्रीय स्मारक का शिलान्यास किया। २८ मई १९८९ को उप-राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के कर कमलों से मुख्यमंत्री शरद पवार की उपस्थिति में स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक का उद्घाटन संपन्न हुआ।
तदुपरांत, अब इतने सालोंके बाद सावरकर पर विष उगलनेवाली वर्तमान कांग्रेस के लिए, इंदिरा जी के पौत्र के लिए क्या ये कहा जाए कि इंदिरा जी और उनके वरिष्ठ नेतागण मुर्ख थे?
देश में जब तक कांग्रेस की सरकार थी तब तक स्वातंत्र्यवीर सावरकर की अवहेलना नहीं हुई। अटलजी की सरकार आई और मुस्लिमों का लाड़-प्यार करनेवाली कांग्रेस की पराजय हुई। इसके बाद ही सावरकर के अपकीर्ति की मुहिम शुरू हुई। हो सकता है उसके पीछे ऐसा मूर्खतापूर्ण विचार हो कि हिंदुत्ववादियों के आदर्श रहे सावरकर को बदनाम करेंगे तभी पुन: सत्ता में आ पाएंगे।
२०१४ में मोदी के नेतृत्व में पुन: हिंदुत्वनिष्ठ सत्ता में आए तब सावरकर विरोध का स्वर अधिक तीव्र हो गया। अब २०१९ के बाद ऐतिहासिक सत्य को समक्ष लाया ही जाना चाहिए यह विचार आगे-आगे आने लगा और उसके अनुसार नए साक्ष्य भी समक्ष आने लगे। अपना झूट बेनकाब होते देखकर, अपनी आवश्यकतानुसार इतिहास रचनेवाली कांग्रेस के पैरों की नीचे से भूमि ही सरक गई। हमारे सभी देशविरोधी कृत्य अब सामने आएंगे इस डर से कांग्रेस भयभीत हो गई। इसीलिए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नेवाली कांग्रेस ने सभी सीमाएं लांघते हुए, अत्यंत निचले स्तर पर, तथ्यहीन कथा रचकर सावरकर की व्यक्तिगत लोकनिंदा शुरू कर दी है।
यहाँ हम प्रमाण के साथ इन आरोपों का खंडन कर रहे है। हमारे हर तर्क को ऐतिहासिक तथ्यों का आधार भी है! लेकिनअब हम मात्र उत्तर ही नहीं देंगे, वरन् कुछ प्रश्न भी पूछेंगे। आज तक हम चुप इसलिए थे हमारी संस्कृति यह सिखाती है की मृत्यु के पश्चात वैर ख़तम हो जाता है।लेकिनअब जब सावरकर विरोधीक मर्यादाओं की हर सीमा पार कर रहे हैं तब, हमें भी अपने सद्गुणों को त्यागकर, ऐतिहासिक प्रमाणों पर आधारित कुछ प्रश्न पूछना बनता है! क्षमता हो तो दो उत्तर!!
जय हिंद! वंदेमातरम्! !
२६ फरवरी २०२०
रणजीत सावरकर
मंजिरी मराठे