अब ये नया नाटक – भगत सिंह विरुद्ध सावरकर!

आरोप

भगत सिंह ने फांसी स्वीकारी लेकिन, सावरकर ने माफी मांग ली।

वस्तुस्थिति

मूलरूप से फांसी की सजा पाए लोगों को छोड़ेजाने की अर्जी करने की इजाजत ही नहीं थी। इसलिए शहीद भगत सिंह ही क्या ऐसे किसी की अर्जी नहीं है। परंतु आज विकृत कांग्रेसी, क्रांतिकारियों में भी भेद कर रहे हैं।

लेकिन सभी क्रांतिकारियों को एक दूसरे के कार्यों की जानकारी थी। एक दूसरे के प्रति बहुत आस्था थी।

‘विश्व प्रेम’ नामक भगत सिंह का लेख बलवंत सिंह के उपनाम से ‘मतवाला’ के दो अंकों में १५ नवंबर १९२४ और २२ नवंबर १९२४ को प्रकाशित किया गया। उसमें वे सावरकर के बारे में लिखते हैं,“वो विश्व प्रेमी वीर हैं जिन्हें उग्र क्रांतिकारी, कट्टर अराजकतावादी कहने में हम लोग जरा भी शर्म नहीं करते – वही वीर सावरकर। विश्व प्रेम की लहरों से आकर चलते हुए कोमल घास पैरों से कुम्हला तो नहीं ना जाएंगी, इसलिए रुक जाते थे”

७ सितंबर १९३० को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई। २३ मार्च १९३१ को उन तीनों की फांसी के दिन तक उनकी सजा कम हो जाए इसके लिए स्वातंत्र्यवीर सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर उर्फ बाबाराव सावरकर भागदौड़ कर रहे थे। १९३० का आंदोलन रोकने के लिए गांधी-आयर्विन समझौता था। उसके पहले बाबाराव ने गांधी जी से भेंट की। बाबाराव गांधी जी से बोले,“सविनय अवज्ञा आंदोलन रोकने के लिए आपके और वाइसराय के बीच जो समझौता होगा उसमें राज बंदियों की मुक्ति पहली मांग होनी चाहिए। उसमें अत्याचारी और अनात्याचारी में भेद न किया जाए” इस पर गांधी जी बोले,“अत्याचारी लोगों को छोड़ो कहना हीनता है, वो मैं नहीं करुंगा। अपने अहिंसा के सिद्धांत के विरुद्ध कैसे जाऊं?” इस पर बाबाराव ने गांधी जी से प्रतिप्रश्न किया,“अत्याचारी राज बंदियों को छोड़ना आपको हीन भावना लगती है, फिर स्वामी श्रद्धानंद की हत्या करनेवाले ‘भाई अब्दुल रशीद को माफ करो’ ऐसा हिंदू समाज और स्वामी जी के पुत्र को आपने कहा वो हीन भावना नहीं है क्या??” इस पर उत्तर न देते हुए गांधी जी चले गए।

बाबा ने उन्हें रजिस्टर्ड पत्र भेजा। उस पर भी गांधी से ‘अत्याचारी राज बंदियों के मुक्ति की मांग करना मैं हीनता समझता हूं’ यही उत्तर आया।

क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी हुई और उसके बाद ही गांधी-आयर्विन समझौता हुआ, सविनय अवज्ञा आंदोलन में पकड़े गए सभी छूट गए। लेकिन देश की स्वतंत्रता के लिए लड़नेवाले क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु नहीं छूट पाए।

लोगों के दबाव के कारण गांधी ने इन तीनों की मुक्ति की मांग तोकी, लेकिन कितने सच्चे दिल से प्रयत्न किये यह सब जानते है। गांधी जी कहते हैं,“पिछले वर्ष कैद हुए सत्याग्रही छूटेंगे, उस समय मेरे अन्य शस्त्राचारी राजबंदी मित्र जेल में ही रहेंगे। जेल में रहना सजा है, ऐसा मुझे बिल्कुल नहीं लगता। अत्याचारी लोगों के लिए भी वो सजा नहीं है। परंतु मुझे उनकी (शस्त्राचारी राजबंदियों) मुक्ति के लिए न्याय समर्थन करते न बना। मैं उन्हें फिर कहूंगा कि वे अपने दमनकारी आंदोलन से दूर हों।”

थोड़े में कहें तो भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को गांधी जी ने फांसी हो जाने दिया।

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी दी गई उस समय सावरकर रत्नागिरी में स्थानबद्ध थे। उस समाचार से सावरकर बहुत परेशान हो गए। उनकी फांसी के दूसरे ही दिन पुलिस जागती उसके पहले ही वहां के युवकों ने सावरकर द्वारा रचित गीत गाते हुए प्रभात फेरी निकाली। भगत सिंह और स्वतंत्रता लक्ष्मी की जयजयकार करते हुए रत्नागिरी को गुंजायमान कर दिया।

स्वतंत्र्यवीर सावरकर की पुस्तक ‘१८५७चं स्वतंत्र्यसमर’ से भगत सिंह अतिशय प्रभावित हो गए थे। १९२८ में निधि संकलन के लिए भगत सिंह ने इस ग्रंथ की भूमिगत अवृत्ति छापी थी। उस समय वह ग्रंथ तीन सौ रुपए में बेचा जा रहा था। वे इस ग्रंथ को ‘क्रांतिकारियों की वीरगाथा’ कहते थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *