सावरकर की हत्या हर दिन…

गांधी की हत्या हो गई। गांधी हत्या का आरोप लगाकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर की राजनैतिक हत्या कर दी गई। अब तो मलिन, ओछी और ऊब लानेवाली राजनीति के लिए सावरकर हर दिन हत्या की जा रही है।

गांधी हत्या में फंसाकर स्वतंत्र भारत में, लाल किले में सावरकर को बंदी बना दिया गया उसके बाद से उनकी उसी लिए की जा रही मानहानि सावरकर को अंदमान की यातना से भी क्लेशदायी लगी होगी। यदि स्वर्ग का अस्तित्व सत्य में होगा तो स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर अब किये जानेवाले क्रूर घाव, उन्हें लाल लालकिले की कैद की अपेक्षा भी अधिक असहनीय लगते होंगे।

देश ही देव और देश को ही धर्म माननेवाले, मात्र राष्ट्रहित का विचार करनेवाले सावरकर के दो प्रकार के हत्यारे हैं। एक हैं वे जिन्हें देश से, समाज से कोई लेनादेना नहीं है। उन्हें मात्र सत्ता प्राप्त करनी है और अपनी तिजोरी भरनी है। दूसरे हत्यारे वे हैं स्वत: को प्रगतिशील कहलाने वाले जातिवादी।

जिस देश की स्वतंत्रता के लिए घर परिवार, तरुणाई की बलि चढ़ा दी उसी देश के नागरिक मृत्यु के बाद भी अवहेलना करें ये कृतघ्नता ही है। सावरकर का संपूर्ण विचार, सभी को अनुरूप नहीं लगेगा, संभव भी नहीं है। उनके विचार अनुरूप न लगते हों तो उन्हें स्वीकारने की किसी ने जबरदस्ती भी नहीं की। लेकिन घृणित राजनीति के लिए उनकी मृत्यु के बाद भी हर कदम पर अवमानना करने का अधिकार भी हमें नहीं है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने हमेशा उपयोगितावाद का सम्मान किया। इसके अनुसार उनके राष्ट्रहित और समाजहित के विचारों को स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन फिर सावरकर की दूरदृष्टि को मानना होगा यही विरोधियों की बड़ी परेशानी है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर अलग माटी के बने थे। उन्होंने कहा था, मेरे विचार पचास वर्ष बाद तुम्हें मान्य होंगे, सावरकर के आत्मार्पण को पचास साल से अधिक समय बीत गया है, लेकिन सावरकर को समझने में हम ही कम साबित हो रहे हैं। सावरकर पर किये जानेवाले आरोपों के उत्तर में वस्तुस्थिति रखने की ये कोशिश है। अर्थात सोए हुए को जगाया जा सकता है, लेकिन सोने का स्वांग रचनेवाले का क्या करेंगे?

रणजित सावरकर (कार्याध्यक्ष)

मंजिरी मराठे (कोषाध्यक्ष)

स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई

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