आरोप
समलैंगिक संबंधों का
वस्तुस्थिति
‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ नामक पुस्तक में ये झूठा आरोप लगाया गया था। लेकिन उसके बाद सावरकर के अनुयायियों द्वारा तत्काल न्यायालयीन कार्रवाई शुरू करने के बाद इस पुस्तक से ये आधारहीन आरोप निकाल दिया गया।
लेकिन इसी पुस्तक में नेहरू की निजी चरित्रहीनता के बारे में कई खुलासे किये गए हैं। (जिनका यहां उच्चारण करना भी संभव नहीं है, जिनकी इच्छा हो वे स्वत: इस पुस्तक को पढ़ें, प्रस्तावना पढ़ लें तो भी बहुत है) ये उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने इस पर हमेशा ही मौन साधे रखा जबकि लेखक ने कहा है कि इस पुस्तक की रचना में स्वत: इंदिरा गांधी की मदद मिली है।
नेहरू ने अपना निजी जीवन कैसे जिया इस पर किसी को आक्षेप लेने का कोई कारण नहीं है। लेकिन यदि निजी संबंध देशहित के विरुद्ध जाते हों तो प्रश्न तो पूंछना ही चाहिये।
‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ नामक पुस्तक में नेहरू के बारे में ऐसा लिखा गया है कि, लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वेच्छा से स्वीकार किया कि भारतीय नेताओं से चल रही वार्ता की गुप्त बातों की चर्चा वे अपनी पत्नी से जरूर करते हैं, इसके अलावा, जो बातें वे नेहरू को अधिकृत रूप से नहीं कह सकते थे, वह बात नेहरू से करने के लिए लेडी माउंटबेटन का वे बार-बार उपयोग करते थे।
इस पुस्तक के कुछ तथ्य आगे आए। लेखक माउंटबेटन के ध्वनि मुद्रित संभाषण के आधार पर कहते हैं,“बीच के काल में भारतीय प्रधानमंत्री व उनकी (माउंटबेटन) पत्नी एडविना के मध्य स्नेह अच्छा जम गया। एडविना माउंटबेटन जैसी स्त्रियां पूरे विश्व में और उसमें भी १९४७ के भारत में एकदम दुर्लभ थीं। निराशा और उदासीनता के कोष से नेहरू को बाहर निकालने में यह आकर्षक, कुलीन, बुद्धिमान और प्रेमी महिला पूरी तरह से योग्य थी! कभी चायपान के समय, कभी मुगल उद्यान में घूमते हुए तो कभी वाइसरॉय निवास के तालाब में तैरते हुए नेहरू के मन की उदासी के पटल को अपने आकर्षक, मोहक व्यवहार से दूर करती, अवसर से मार्ग निकालते हुए वे सहजता से अपने पति के प्रयत्नों का साथ देती थीं”
इस पर कौन बोलेगा? इसका स्पष्टीकरण आज कौन देगा?