‘भारत छोड़ो’ का रूपांतर ‘भारत तोड़ो’ में होगा – स्वातंत्र्यवीर सावरकर

आरोप

सावरकर ‘चले जाव’ आंदोलन में सम्मिलित नहीं हुए, क्यों की वे अंग्रेजों के साथ थे।

वस्तुस्थिति

मूलरूप से सावरकर ही नहीं बल्कि,डॉ आंबेडकर और अन्य राष्ट्रवादी नेता इस आंदोलन में सम्मिलित नहीं हुए थे। क्या कांग्रेस के लोगों का कहना है की वे भी अंग्रेजों के साथ थे?

सावरकर का ये दृढ़ विचार था कि ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन ‘भारत तोड़ो’ में परिवर्तित हो जाएगा। कांग्रेस के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए सावरकर ने कुछ शर्तें रखी थीं। २ अगस्त १९४२ को पुणे में संपन्न भाषण में सावरकर ने आंदोलन को लेकर अपनी भूमिका स्पष्ट की थी। कांग्रेस द्वारा संकल्पित स्वतंत्रता युद्ध में हिस्सा लेने के लिए हिंदू महासभा तैयार है। लेकिन, उसके लिए हमारी तीन मांगें हैं।

इसमें पहली मांग है – अंग्रेज भारत छोड़ें लेकिन, अपने सैनिकों को यहीं रखें, ऐसा प्रस्ताव कांग्रेस ने रखा है। अब सेना अंग्रेज होगी तो हम स्वतंत्र कैसे होंगे कांग्रेस इसे समझाए!

दूसरी मांग – कांग्रेस ये वचन दे भारत की अखंडता में विघ्न नहीं आएगा।

तीसरी मांग –किसी भी परिस्थिति में मुसलमानों को हिन्दुओं से अधिक अधिकार णा दिए जाय।धर्म कोई भी हो, लेकिन सभी नागरिकों के अधिकार समान हों।

उन्होंने कहा की अगर ये तीन मांग कांग्रेस मानी करे तो पिछली सभी बातें भूलकर, हिंदू सभा कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई में सम्मिलित होगी, लेकिन कांग्रेस ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया!

इस समय सावरकर ने बताया कि कांग्रेस का ध्येय और नीति युद्ध के होते ही कैसे बदलती गई और हिंदू सभा की नीति शुरू से ही कैसे राष्ट्रहित और न्याय संगत है।

कांग्रेसी बंधुओं को लक्ष्यित करके सावरकर बोले,“इस ‘चले जाव’ आंदोलन से देश को कोई लाभ होनेवाला नहीं है। इसकी अपेक्षाकृत सैनिकीकरण और औद्योगिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस के आंदोलन से स्वराज मिला तो वो हमें चाहिए ही। स्वराज लानेवाले को हम गुरु मानेंगे। लेकिन उसमें अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार न मिले और देश का विभाजन भी न हो। ये वचन कांग्रेस अपने प्रस्ताव में दे रही होगी तो हम भी स्वतंत्रता की लड़ाई में जो त्याग करना पड़ेगा उसके लिए तैयार हैं।”

इस भाषण में सावरकर ने कहा,“कांग्रेस को नागरी लिपि वाली हिंदी को ही राष्ट्रभाषा मान्य करना चाहिए। मेरे पास मौजूद साक्ष्यों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि, गांधी की नीति हमेशा चंचल रही है और यह निश्चित है कि, एक ही क्या, कई पाकिस्तान निर्माण करने में भी गांधी अपनी सहमति दिये बगैर नहीं रहेंगे”

इसी भाषण में वे आगे कहते हैं कि,“उपवास करके अपनी मांग मनवाई जा सकती है, गांधी का ये विचार भी गलत ही साबित होगा। क्योंकि युद्ध की तोप गरजने के समय गांधी के उपवास की तरफ कोई भूलकर भी नहीं देखेगा।”

सावरकर की शर्तें देशहित में होने के बावजूद कांग्रेस ने उसे मान्य नहीं किया। इसके उलट ७ अगस्त १९४२ को मुंबई में हुई कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन में ये घोषित कर दिया मुसलमानों के लिए पहले की अपेक्षाकृत अधिक अधिकार दिये जाएंगे और केंद्र शासन से बाहर निकलने के प्रांत के स्वयं निर्णय का अधिकार भी कांग्रेस ने मान्य कर लिया।

गांधी द्वारा जिन्ना को भेजे गए पत्र से कांग्रेस मुसलमानों का कितना तुष्टीकरण कर रही थी ये स्पष्ट होता है। गांधी जिन्ना को लिखते हैं,“पूरी सच्चाई के साथ मैं एक बार पुन: कहता हूं कि, अंग्रेज सरकार हिंदुस्थान की अपनी जिम्मेदारी मुस्लिम लीग के हाथ सौंप दे तब भी कांग्रेस उस पर बिल्कुल आपत्ति नहीं जताएगी। भारतीय संस्थानों के साथ पूरे हिंदुस्थान की जिम्मेदारी अगर ब्रिटिशों ने मुस्लिम लीग के हाथ सौंपी तो भी कांग्रेस विरोध नहीं करेगी। अपितु लीग जो भी सरकार स्थापित करेगी उसमें कांग्रेस शामिल होगी।

८ अगस्त १९४२ को कांग्रेस महासमिति की सहमति के बाद गांधी जी अपनी अहिंसक लड़ाई जारी रखनेवाले थे। लेकिन उसी रात गांधी जी समेत कांग्रेस के सभी नेताओं की गिरफ्तारी हो गई। इससे जनता आक्रेशित हो गई और दंगे शुरू हो गए। उसे शांत करने के लिए अंग्रेजों ने दमन शुरू कर दिया। आंदोलनकारियों ने डाक कार्यालय, रेल्वे स्थानक तोड़ दिये। पुल उड़ा दिये, रेल्वे लाइन उखाड़ दिये।

किसी नेता के बगैर हुआ ये आंदोलन हिंसक ही हो गया। जिन्ना के आदेश के अनुसार मुसलमान इस आंदोलन से दूर रहें । यही सच्चाई है की इस आन्दोलन में केवल हिंदू सहभागी थे।

फिर भी १० अगस्त १९४२ को सावरकर द्वारा निकाले गए पत्रक में गांधी, नेहरू जैसे नेताओं की गिरफ्तारी और अंग्रेजों द्वारा दंगों का शमन करने के लिए किये गए कठोर उपायों का कड़े शब्दों में विरोध किया।

सावरकर की भविष्यवाणी अक्षरश: सत्य साबित हुई, ‘भारत छोड़ो’ का रुपांतरण आगे ‘भारत तोड़ो’ में ही हुआ। सावरकर इस आंदोलन में सहभागी नहीं हुए, इसलिए आग उगलनेवाली कांग्रेस और गांधी जी, हिंदु संगठनों के राष्ट्रहित वाले भागानगर और भागलपुर के आंदोलनों में क्यों शामिल नहीं हुए, इसका उत्तर कौन देगा?

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