संभाजी महाराज – एक बलिदानी छत्रपति – स्वातंत्र्यवीर सावरकर

आरोप

सावरकर ने संभाजी महाराज को दुराचारी कहा।

वस्तुस्थिति

सावरकर के काल तक राजा संभाजी पर संशोधन नहीं हुआ था। वे दुराचारी थे, यही वर्णन तत्कालीन सभी ऐतिहासिक ग्रंथों में था। इसलिए ऐसा कोई उल्लेख सावरकर ने किया होगा तो सावरकर को दोषी ठहराया नहीं जा सकता।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने छत्रपति संभाजी महाराज पर एक लेख लिखा है – ‘बलिदानी छत्रपति’। इसमें सावरकर लिखते हैं ‘मराठी सिंह को पालतू कुत्ता बनाना असंभव है इसलिए औरंगजेब ने काफिर का वध करने की आज्ञा दे दी। लेकिन इस धमकी का शिवाजी महाराज के पुत्र पर थोड़े ही कोई प्रभाव पड़नेवाला था! दहकती अग्नि में लाल की गई छड़ और सड़सा भोंककर उनकी आंखें बाहर निकाल दी गईं। उनकी जिव्हा के अनेक टुकड़े कर दिये गए। लेकिन इन राक्षसी उत्पीड़न से भी उस राजबलिदानी का धैर्य भंग नहीं हुआ। अंतत: उनका सिर काट दिया गया। वे मुसलमानों की धर्मांधता की बलि चढ़ गए, लेकिन उन्होंने हिंदु जाति को अक्षय उज्वलता प्रदान कर दी! आत्मबलिदान की इस एक कृति से संभाजी महाराज ने महाराष्ट्र धर्म का – हिंदु पुनरुद्धार की पवित्रता का जो संचार किया वह दूसरे किसी तरह प्रदर्शित करना संभव नहीं था। संभाजी को शिवाजी महाराज की भौतिक संपत्ति संजोना नहीं आया,लेकिन संभाजी ने अपने अतुलनीय बलिदान से शिवाजी महाराज की नैतिक और आध्यात्मिक संपत्ति को न सिर्फ संजोया बल्कि उसे कितना ही गुणा उज्वल और बलशाली कर दिया। हिंदु धर्म के लिए आत्मबलिदान किये राजबलिदानी के रक्त से पोषण मिलने पर हिंदु स्वतंत्रता समर को विलक्षण दिव्यत्व और नैतिक सामर्थ्य का स्थान प्राप्त हुआ।

सावरकर के कृतिशील अनुयायी श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम गोखले, उनकी पत्नी डॉ.कमल गोखले ने डॉक्टरेट के शोधग्रंथ के लिए ‘छत्रपति संभाजी’ का विषय चुना था। संभाजीराजा पर कुछ सीमित पुस्तकों से मिली जानकारी के अतिरिक्त किसी का विचार आगे नहीं बढ़ पा रहा था। इतिहास सावरकर का पसंदीदा विषय होने के कारण उनका मार्गदर्शन लेने के लिए गोखले दंपति सावरकर से मिलने गए। सावरकर ने सम्मान के साथ उनका कुशलक्षेम जाना और कमल ताई से पूछा,“शराब के व्यसन से और कलुशा कब्जी की संगत के कारण संभाजी ने अपने साथ धोखा करा लिया ये सच है क्या? तब कमल ताई बोलीं कि, “अभी मेरा अध्ययन चल रहा है।” तब सावरकर उनसे बोले,“ये मत भूलो की संभाजी राजा ने जो धैर्य और शौर्य दिखाया वो किसी गोबर गणेश का काम नहीं है! संभाजी यदि शराबी होते और इतिहास में लिखे वैसे स्त्री-लम्पट होते तो ऐसा दिव्यकार्य कभी कर नहीं सकते। सुरा और सुंदरी में आसक्त व्यक्ति को हिंदू इतिहास में इतना शाश्वत स्थान मिले ऐसा हो ही नहीं सकता। खुली आंखों से बलिदान को स्वीकार करना बच्चों का खेल नहीं है। तुम इस विषय में गहराई से अध्ययन करो और सत्य को बाहर लाओ”

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