सावरकर को अंग्रेज सरकार से पेन्शन

आरोप

सावरकर अंग्रेज सरकार से पेन्शन लेते थे

वस्तुस्थिति

अंग्रेज सरकार ने १९२८ से स्थानबद्धता में रहनेवालों को भोजन के लिए डेढ़ रुपया, कपड़े-लत्ते के लिए चौंतिस रुपए, अन्य खर्च के लिए वार्षिक सौ रुपए का निर्वाह भत्ता देना मान्य किया था। इसी प्रकार बंगाल के बंदियों के परिवार के लिए बीस से चालिस रुपए अलग से दिये जाते थे।

सावरकर की १९१० में गिरप्तारी हुई तभी उनका घर-द्वार, संपत्ति जब्त हो गई थी। १९२४ में उन्हें रत्नागिरी में स्थानबद्ध करके रखा गया। तब उदर निर्वाह के लिए उन्होंने वकालत या अन्य कोई कार्य करने की अनुमति सरकार से मांगी थी। लेकिन वो मान्य नहीं हुई तब सावरकर ने निर्वहन भत्ते की मांग की। बेशक वह मांग कानून के अंतर्गत ही थी।

इस मांग पर गृह विभाग से सचिव हेनरी नाइट ने लिखा,“सावरकर कारागृह में जाकर बची हुई सजा भुगतें। उन्होंने खुशी से शर्तें स्वीकारी हैं। इसलिए उन्हें भत्ता देने की मंजूरी उचित नहीं है। सरकार के भत्ता मंजूर करने पर सावरकर सामान्य अपराधी नहीं बल्कि राजनीतिक बंदी हैं इसे स्वीकार करने जैसा होगा। इसलिए उनके भत्ते की मांग को अस्वीकार कर दिया जाए।”

लेकिन तत्कालीन गवर्नर सर फ्रेडरिक साईक्स ने फिर भी सावरकर की अर्जी पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया। उन्होंने उल्लेख किया कि,“सचिव का कहना यद्यपि सत्य है फिर भी नई जगह पर रहने के लिए भेजकर हमने उनके उदर निर्वाह का मार्ग बंद कर दिया है यह भी उतना ही सत्य है।”

इसके पश्चात रत्नागिरी के प्रभारी जिलाधिकारी वी.बी मर्डेकर, मुंबई के पुलिस आयुक्त पी.ए केली, नासिक के जिलाधिकारी मिलार्ड से सावरकर की आर्थिक स्थिति के विषय में जानकारी मंगाई गई। (संदर्भ : शोध सावरकरांचा – य.दी. फडके) अंतत:१ अगस्त १९२९ से सावरकर को महीने में ६० रुपए का भत्ता मिलने लगा। अन्य क्रांतिकारियों को पूरा भत्ता मिलाकर ( प्रतिदिन डेढ़ रुपए के अनुसार महीने का ४५ + कपड़े-लत्ते का ३४ + अन्य खर्च के १०० रुपए) ८७ रुपए मिलते थे वहीं सावरकर को मात्र ६० रुपए मिलते थे, इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

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