आरोप
सावरकर ने राष्ट्रध्वज का विरोध किया था
वस्तुस्थिति
स्वातंत्र्यवीर सावरकर की संकल्पना से तैयार हुआ भारत का तिरंगा, मादाम कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ड में संपन्न अंतरराष्ट्रीय समाजवादी परिषद में २१ अगस्त १९०७ को फहराया था।
संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ.राजेंद्र प्रसाद ध्वज समिति के भी अध्यक्ष थे। उन्हें तार भेजकर सावरकर ने बिनती की थी कि राष्ट्रध्वज पर केसरी पट्टा होना चाहिए और चरखे के बजाय शौर्य का प्रतीक अशोक चक्र होना चाहिए। सावरकर के प्रयत्नों को यश मिला। इसके कारण १५ अगस्त १९४७ को स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने, गर्व से स्वतंत्र भारत का धर्मचक्र अंकित तिरंगा और हिंदू महासभा का भगवा ध्वज दोनों ध्वज अपने घर पर फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया था।
लेकिन ऐसा होने के बावजूद भी बदनामी किसकी होती है? सावरकर की! और स्तुति पात्र कौन है? तो अपने ध्वज को कौड़ियों के मोल समझनेवाले गांधी!
राष्ट्र ध्वज से चरखा हटाए जाने और खादी के बदले रेशमी कपड़े की योजना से महात्मा गांधी ध्वज को लेकर नाराज हो गए। ३ अगस्त १९४७ के ‘हरिजन’ के अंक में महात्मा गांधी लिखते हैं,“कांग्रेस का खादी का तिरंगा झंडा राष्ट्रध्वज के तौर पर स्वीकार नहीं किया गया, इसको लेकर मुझे बड़ा दुख होता है। गणतंत्र के नए ध्वज में चरखा और खादी के लिए स्थान नहीं होगा तो मेरे मत से वह ध्वज कौड़ी के मोल का है”